डर

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आज की दुनिया  प्रगतिबादी हैं। जहाँ लोग अपनी पहचान, अपने वजूद को खोते जा रहे हैं। जिसके मुख्य कारणों में डर का नाम आता है। ऐसा कहा जाता है कि जिसने अपने अंदर के डर के ऊपर सफलता पा ली वह इंसान ज़िन्दगी में किसी भी सफलता को हासिल कर सकता है। इसलिए आज के समय में यह सिद्धांत सभी पर लागू होता है।

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डर को हमे बहुत ही सरल तरीके से समझना होगा वरना इंसान इस दुनिया में सफलता के कदम नही छू पायेगा। क्योंकि डर ही हमे किसी भी काम को सही तरीके से करने का बिस्वास दिलाता है। छोटे बच्चों को भूतों का डर हे बड़ों को सफलता का दर है तो किसी को मौत का दर है।अगर किसी बच्चे का पेपर के लिए डर ख़त्म हो जायेगा तो वो पढ़ अना छोड़ देगा अगर किसी को पैसे ख़त्म होने का डर नही तो वह पैसों की बर्बादी चालू कर देगा। आज के समय इंसान को सभी से कदम से कदम मिला कर चलना पड़ता है जिसकी वजह से वह चीजो को सही तरीके से नही कर पाता है।
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डर एक ऐसी मनोवैज्ञानिक बिमारी का नाम है जिसका पूरा जाना भी सही नही और पूरा रहना भी सही नही। डर इंसान की सोचने और दूर देखने की क्षमता को कमजोर कर सकता है। अगर किसी इंसान को डर के ऊपर सफलता पानी है तो उसको उसके बारे में सिर्फ एक जगह बैठकर सोचना नही है उसको बाहर निकलना पड़ेगा और अपने आप को दूसरे कामों में लगाना पड़ेगा तभी उसका डर भागेगा। इंसान को इस डर को सिर्फ समझने की जरूरत है क्योंकि यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण एहसास है। हमको सिर्फ इसको एक अलग नजरिए से देखने की जरूरत है। इस बीमारी से सिर्फ हम एक ही तरीके से बच सकते है और वह है की हम इसके बारे में बिलकुल भी न सोचें। 
      "डर र के भी नही जीना भे और दर के बिना भी क्या जीना है"

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