गजोधर के 3 सुसाइड।

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वो कहते है न, कि अंदर की भावनाओं को झ बाहर निकाल दो, तो मन शांत हो जाता है। हमारे गजोधर की कहानी भी इसी बात को साबित करती है।

गजोधर, नवोदय विद्यालय मैं छठवी क्लास से पढ रहा था। अब नवोदय वालो की एक खास बात होती है । डे बोर्डिंग स्कूल के बच्चे ज़्यादातर वक़्त घर मे रहते हैं। वही नवोदय वालो के लिए उनके दोस्त ही घरवाले होते है, सुबह से रात या कह दो कि हर पल ही दोस्तो के साथ रहना है। दोस्त ही दुश्मन, और दोस्त ही भाई। दोस्त ही गुरु दोस्त ही चेला, गोल दुनिया मे दोस्त ही थे ।

तब गजोधर 6वी क्लास मे था, जब नवोदय मे दाखिला हो गया। 2 साल मे ही दोस्त भाई बन गए और कुछ लडकिया बहने भी बन गयी। लेकिन गजोधर के खास दोस्तो के एक ग्रुप ने कुछ चुनी हुई लड़कियॉ को भाभी बना लिया था । सारा किया कराया अपने गजोधर का था। तारा नाम की लड़की , दिखने में कोई खास नही , सो गजोधर भी कोई हीरो की लिस्ट मे नही आने वाले थे, बस स्वभाव अच्छा था। तो गजोधर को पसन्द आ गयी। और अब सारा दिन नवोदय के भीतर ही रहना था तो ये काम ज्यादा मुश्किल न था।

एक दिन इंटरवल मे, तारा की दोस्त और उसको कॉपी लेने के बहाने रोक लिया, इस वक़्त में, गजोधर ने बोर्ड पर, अपने प्यार को चॉक से बया कर दिया। लेकिन कॉपी का काम जल्द ही हो गया, और तारा बाहर निकल गयी। लेकिन ये बात ज्यादा देर तक रुक न सकि, स्कूल खत्म होते ही फिर से तारा को रोका गया। और इस बार गजोधर ने प्रेमपत्र हाथो मे ही रखा। अब बात पहुंच गयी थी उस पार, बस था इंतज़ार लेकिन नवोदय की कड़ी नियमावली तारा के उत्तर को इस पार नही आने दे रहे थे। रात को कोई निकल नही सकता, और लड़के लड़की साथ मे बात तो ठीक ही है, एक गली मे भी न दिख अब  तो गुजरनी ही थी, शायद सबसे लंबी रात। “लेकिन ये भी गुज़र ही जायेगी”, हर आशिक़ ऐसा कहता है। लेकिन ये नवोदय मे गुजरनी थी , तो अंदाज़ अलग था इस रात का।

फटी किताब मे छुपे मोबाइल बाहर निकलते है, ताश की कई गड्डियां बेगम को जीतने और गुलाम को बनाने के लिए बिल्कुल तैयार। जैसे ही सायरन की आवाज़ आई जो लाईट बन्द करके सोने के लिए रहती है, यहा उसका मतलब नवोदय के दिन के दूसरे भाग का आरम्भ होता है। कोई कैंटीन की रोटियों को गर्म करने मैं लगा , तो कोई सुटटे का आनंद लेने मैं। मानो छोटी मधुशाला का मन्ज़र हो आपके सामने हो।

अनुराग कश्यप की फिल्म के बीच लीला भंसाली का निर्देशन भी झलक मे था। गजोधर और दोस्त एक अलग जगह बैठे बस उत्तर का अंदाज़ लगाये जा रहे थे। इस रात तारा कई लड़को की बहन तो बन गयी थी लेकिन क्या एक की भाभी भी बनेगी य नही ! ये विषय अब सुट्टे पे चर्चा का बन गया था । अब अजीब से अजीब कयास लगाये जा रहे थे। कोई कह रहा था की
“अरे तारा ने पक्के से उस पत्र पर नमकीन खाई होगी “।
“अरे नही , नमकीन तो मैंना खाती है, वो भी पानी डाल के” राम के यह कहते ही सब हस पड़े लेकिन अभी भी कही मुस्कुराहट छुपी थी गजोधर के चेहरे पे।
किसी ने नही कहा की कोई उस पत्र को बार बार निहार रहा होगा। और उसपर उत्तर लिख रहा होगा। कहता भी कौन, गजोधर भी आजकल सिर्फ मन मे बात करता था।

अब ऐसे माहोल के बीच, कब सूरज भी उत्तर पता करने चाँद को पीछे छोड़ आया, शायद उसे भी न पता हो। अब धड़कनें बढ़ रही थी, अब रिजल्ट का वक़्त था। या बोलो कि रिपोर्ट आनि थी,य पोसिटिव य नेगेटिव, प्रतिशत की बात बड़ी समस्या वाली हो जाती है। 

फिर से साधारण सा नवोदय का दिन शुरू होता है, जो बाहर की दुनिया के लिए एक कडी और बच्चों को सुधारने के लिए जरूरी है। लेकिन आज सादगी भी रोमांच पैदा करने वाली थी, सिर्फ कुछ के लिए। दुनिया है ही ऐसी साहिब, किसी को रंगीन दिखती है तो किसी को बेरंग। बल्कि होता सब देखने की नज़रिये से है। यही हाल आज गजोधर के दोस्तो और गजोधर मे था। आज की प्रार्थना भी अजीब धुन मैं हुई थी, मानो नुसरत साहब खुद गजोधर के कान मे आज रस घोल रहे थे।
गजोधर भी आज सुर लय ताल मिलाकर भजन गा रहे थे मानो। अब इस मस्त माहौल मे, कब क्लास का टाइम आ गया इसका पता न चला।

अब क्लास मे गजोधर और दोस्तो की नज़र सरहद के उस पार थी। तारा अगर थोड़ा भी हिले तो उसको कई इशारो की तरह देख रहे थे। हा, य ना का अंदाज़ा तो एक मुस्कान से निकल रहा था। लेकिन तारा ने इंतज़ार नही किया । पहले घण्टे के बाद ही प्रेमपत्र गजोधर को लौटा दिया। अब समय आ गया था, और भला गजोधर किसका इंतज़ार करता। तुरंत ही, पत्र खोल दिया।

अब वो किसी रफ कॉपी का मामूली सा कागज़, उसपर इतनी बार नज़रो के बाण छोड़े गए थे की उसकी जान ही निकल गयी थी। अब बनते समय उस कागज़ को भी थोड़ा पता होगा बस कुछ पैसो की कीमत वाले इस पेज पर इतने महंगे पलो की दास्तान बयां होगी ।

गजोधर के मन की उत्सुकता को फिलहाल कोई कलम या स्याही बयां नही कर सकती थी। पत्र तो हाथ मे था लेकिन उत्तर नही। उस पन्ने की दशा मानो कड़ी धूप मे किसी छोटे पोधे की हालत जैसी । अब ये समस्याए ऐसी थी जैसे “तारक मेहता का उल्टा चस्मा” वाले नाटक मैं आती है। लेकिन बात जब प्यार की हो तो कुछ समझ नही आता बस जो भी सामने आये उसका समाधान चाहिए। लेकिन ये असली दुनिया थी यहा इसका कोई समाधान नही था । कोई चाहे तो तारे तोड़ लाये लेकिन अब इस पन्ने मे इतने भाव थे की वो इसका बोझ न उठा पाया । बिल्कुल खस्ता हालात मे दम तोड़ दिया।

अब कैसे पता चलेगा की कहानी किस मोड़ पर जायेगी। कश्मकश का दौर शुरू हुआ। उत्तर की खोज शुरू हुई और बड़ी जल्द मिल गया। उसकी दोस्त से पूछा गया और वहा से पता चला की तारा ने गजोधर को पोसिटिव रिज़ल्ट दिया है।

तो कहानी अब शुरू होती है। इनकी प्रेमकहानी अब मशहूर हो रही थी। एक तो  सीनियर क्लास(10)  मे थे , साथ ही कुछ छुपा न था , तो कुछ आज़ादी भी मिल रही थी ।
इनके बीच अब प्यार था या बहुत गहरी दोस्ती ये बताना ज़रा मुशकिल हैं। अक्सर 10वी क्लास मे हम इतने समझदार नही होते प्यार को समझ पाये। बस कोई अच्छा लगने लगे या उसकी बातें मन मोह ले तो हम उसे ही प्यार समझ बैठते है। लेकिन ये दोनो सबसे ज्यादा कुछ चाहते थे तो अपने बीच की इस दोस्ती को। इसके लिए कुछ भी कर सकने का जज्बा , इसे खोने का डर, इसमे खोंने का अनुभव, सब कुछ यही था बस।

जब जब कोई किसी को इतना चाहे की वो कुर्बानी से न डरे, तो समझ लो कुर्बानी का वक़्त आ गया। या यू कहो की जब कोई किसी पर सब कुर्बान करता है, तभी असल जज्बे की परीक्षा शुरू होती है।

अब प्यार है, तो तकरार भी होगा और इंतज़ार भी। लेकिन ये जो तीसरा पड़ाव है न , हा यही इंतज़ार वाला - अक्सर नए किस्सों को जन्म देता है।

आगे की कहानी - गजोधर के 3 सुसाइड -2

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