ख़्यालो का सफ़र

Source- wns
 टिकट को दिखाने के बाद सीट मैं बैठकर मन मैं मानो हज़ारो ख़यालो ने एक साथ दस्तक दी। मैं और मेरा दोस्त आज उन लोगो से मिल सकते है  जिन्हें सिर्फ टीवी मैं देखा या अखबारो मैं पढ़ा था। जल्दबाजी को सुबह से ही अपने साथ रखा था तो इस यात्रा मैं जो की करीबन तीस मिनट की होगी(यदि दोनो प्रकार की लाल बत्ती से ज्यादा मुलाकात न हुई), वो कई विचार जो मन के घर के दरवाजे के बाहर थे, अचानक से तोड़ कर टूट पड़े। तुरंत ही पास को बाहर निकाला और समय सारणी को देखा,उसपर उन विशिष्ट नामो पर आँखे यूं ठहर गयी मानो  जैसे किसी बाज़ ने मछली को ऊपरी सतह मैं हिचकोले खाते देख लिया हो। 

हमारे साथ वाले स्टॉप से ही बस मैं एक और जन सवार हुए जो मानो किसी साक्षातकार के लिए तैयार हो। चेहरे मे कई मनोभाव स्पष्ट रूप से बया हो रहे थे। हल्की सी राहत, कुछ घबराहट, चिंता की लकीरे, बस किसी ओर से एक आशा थी उस चेहरे मैं। जैसे ही अगला स्टॉप आया मैं फिर से ख्यालो की दुनिया मैं क़ैद सा हो गया। परन्तु इस बार न उन हस्तियों कर बारे मे, न उस चेहरे के अनेक मनोभाव के रहस्य मे, मेरे मन मैं एक और विचार ने दस्तक दी। यात्रा के दौरान ही क्यू हम विचारक बन जाते है? क्यू जीवन के अनसुलझे किस्सों, समस्याओं को हम किसी यात्रा के बीच मे ही सुलझाने के प्रत्यन मे गहरी सोच मे खो जाते है? इस यात्रा मे, मैं भी उसी अनुभव मैं खो गया और सोचने लगा कि जीवन भी इस यात्रा की तरह ही तो है। हर स्टॉप मैं नए साथी आते तो है लेकिन कब कौन साथ छोड़ दे ये कोई नही जानता, जीवन भी ऐसी ही अनिश्चितायो से परिपूर्ण है। 
अब उसी चेहरे को ही देख लो जो शायद मन मे कई सवालो के जवाब खोज रहा हो। जो शायद आज नौकरी पाने की जद्दोजहद मे अपनी पुरानी कामयाबियों की एक फाइल को बार बार देख रहा था, लेकिन उन कामयाबियों का क्या जिनको इन पन्नों पर नही उतारा जा सकता, वो सफलताए जो असफल होने पर मिली? वो अनुभव जो गलतियों से मिला। मालूम पड़ता है की यह नौकरी इसके लिए सबकुछ हो, जो अभी इसकी है ही नही। जीवन मे भी निराशा इसी कारण से उत्पन्न होती है कि हम उसपर हक़ मानते है जो कभी हमारा था ही नही। वैसे तो हमारा अपने शरीर पर भी हक़ नही और हम दुसरो पर अधिकार का दावा करते है। कुछ भी हो परंतु वो चेहरा हर अगले पल अजीब गंभीरता की ओर बढ़ रहा था।शायद यात्रा के दौरान वो भी खयालो की दुनिया मैं खो गया हो और अपनी पिछली असफलताओं की यादो मैं विलीन हो गया हो। या तो उसके ऊपर घर की जिम्मेदारियो का भोझ हो, या तो लोगो की कभी न खत्म होने वाली आशायो का साया हो । उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे बहुत कुछ कह रही थी।अगले ही पल अचानक से ब्रेक लगा और वो आगे गिर गया । शायद उसका डर उसपर हावी हो गया थ।

बस मैं उस समय हर उम्र के लोग सवार थे, बच्चे, जवान और बूढे। मानो पूरी बस क ये यात्री किसी के जीवन के सफर को बया कर रहे हो। जीवन के कई पड़ाव उस वक़्त मैं महसूस कर सकता था। सिर्फ जीवन के अलग वक़्त ही नही बल्कि अनेक भावनात्मक चरणों का अहसाह भी सामने था। कोई उस चेहरे की तरह गंभीर तो कोई उस हवलदार की तरह उत्साहित जैसे मानो आज उसे पगार मिल गयी हो। या तो उस बच्चे की तरह मासूम जो बस मैं लगी बंद टीवी को भी बड़ी रोचकता से देख रहा है,या उस लड़की की तरह जो बुरखे के अंदर भी बेड़ियों को महसूस कर रही थी। या उस बूढे चेहरे की तरह जिसके चेहरे की लकीरो मे सालों की अनसुनी कहानिया बसी है, या उस बस चालक की तरह जो अपनी मंजिल की सावधानी के साथ और बढ़ा चला जा रहा हो। 

या तो मेरी तरह जो इन सभी विचारो से जीवन को समझने का असफल प्रयास कर रहा है। जैसे ही मेरा स्टॉप आया, ये सारे ख्याल न जाने किस कोने मैं चले गए और उन नामचीन हस्तियों से मिलने के ख्याल ने शरीर मे एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया और हम आगे बढ़ गए।

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