मकर संक्रांति

सुबह की चाय की बात ही निराली है,
लेकिन अक्सर मेरी चाय ठंडी पड़ जाती है,
ख्यालों की गहराई में जाने का यही परिणाम होता है|
आज मेरी आँख जरा देर से खुली और आँख खुलते ही पहला ख्याल चाय-नाश्ते का आया|

हॉस्टल में रहना सबसे ज्यादा इसलिए अखरता है,
बिना आव-ताव देखे मैं नाश्ता लेने भागी कि कहीं खत्म न हो जाये|
 सूरज की लालिमा भी आज देखने योग्य लग रही थी,
मानो कोई ख़ुशी ज़ाहिर कर रही हो|
नाश्ते की लाइन में लगने से कम-से-कम आज सूरज दादा से गुफ्तगू तो हुई|

आखिरकार जब नाश्ता मिला तो ब्रश करके
सीधे खाने बैठ गई और चाय की चुस्कियों के साथ
 व्हाट्सएप्प के मैसेज चेक करने का अलग ही मज़ा है|
तब मैंने देखा कि हैप्पी मकर संक्रांति के बहुत सारे मैसेज पड़े हुए हैं और
 सबसे ज्यादा जिसमे मेरी माँ के थे, मैंने भी उन्हें हैप्पी मकर संक्रांति का मैसेज डाल दिया, उस पर माँ का रिप्लाई आया कि बेटा! नहा लिया कि नहीं|
Source -bananakick.com

इस बात पर मेरी हँसी छूट गई, मैंने कहा क्यों माँ आज कुछ है क्या?
तो बोली बेटा इतना बड़ा संक्रांति का त्यौहार है, नहीं नहाया तो अब नहा के और पूजा करके ही खाना कुछ|
मैं भी बोल पड़ी कि 
माँ मैं हॉस्टल में रहती हूँ, यहाँ कौन करता है ये सब और हमारे लिए सिर्फ होली और दिवाली ही हैं त्यौहार अब| माँ ने विरोध करते हुए कहा की, ये भी एक बड़ा त्यौहार है, आज सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, और तुम्हारे जैसा सब सोचने लगे तो आगे जाके ये  विलुप्त ही हो जाएगा, जितना बन पड़े उतना करना चाहिए|

चाय नाश्ता छोड़ के मैं माँ से बहस में लग गई,
"यहाँ तो किसी को याद भी नहीं होगा"- इतना कह कर मैंने माँ की बात को अनसुना कर दिया  और फिर से खाने लग गई|

इतने में मेरी रूममेट हड़बड़ा कर उठी और मेरी तरह
नाश्ता लेने भागी, नाश्ता ला कर उसने पैक करके रख दिया और कुछ कपड़े समेट कर बाथरूम की और जाने लगी तो मैंने कहा पहले ब्रश करके खाले, ठंडा हो जाएगा नहीं तो| तो बोली

अरे! संक्रांति है आज, नहाकर ही कुछ खाऊँगी|
उसके इस उत्तर ने कहीं न कहीं मुझे शर्मसार कर दिया|
कि हम ही हैं जो अपने धर्म का पालन नहीं करते और फिर संस्कृति विलुप्त होने का आरोप दूसरे पर थोप देते हैं|

अपनी बेपरवाही के बारे में सोचते-सोचते और शर्म करते,
मैंने भी अपना आधा बचा नाश्ता रख दिया,
और चाय का क्या था वो तो ठंडी ही हो चुकी थी|

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