कहानीकार -1

             
Source - bookriot
       
                                   कहानीकार
अध्याय 1

कहानीकार भी न जाने कौन होते है, कब कहा से और कैसे एक मामूली सी कहानी को रोचक बना कर चले जाते है। कभी कभी कुछ ज्यादा ही रोचक। और ये विचारो की शक्ति की अद्भुत है, पता ही नही चलता की असल जिंदगी मैं हम कब है और कब नही। अब पिछले महीने की ही बात है, मैं अपने बड़े मामा के घर शादी मैं गयी थी। अब वो ठहरे सरकारी अफसर तो जाहिर सी बात है की वो शादी शाही अंदाज़ मैं होनी थी। मैं तो वैसे ही कई नई चीजो को देखकर अचंभित थी। परन्तु जिसने मुझको झकझोर कर रख दिया वो था श्याम, एक कहनीकार। शादी के कई समारोह के बाद सबके सामने श्याम को एक कहानी सुनानी थी तो शाम के वक्त जब तोते अपने घर वापस लौट रहे थे और सूर्य की लालिमा अपने आखरी चरण पर थी। अब एक कहानीकार के पास मानो कुछ रहस्मयी कलाए होती है। कहानी के शुरू होते ही सारे बिलकुल शांत हो गए मानो उस हॉल मैं कोई न हो। वैसे तो वो एक साधारण सी कहानी थी लेकिन फिर भी जिस तरीके से लोगो ने उसे सराहा, उससे लगता था मानो ऐसी कहानी कभी सुनी ही न हो। मै भी कहानी सुन रही थी। और कहानी के बीच मैं ही खुद को कही और पाया। कहानी कुछ ऐसे शुरू हुई। एक लड़की अकेले भरे बाज़ार मैं कुछ समान लेने गयी थी। लेकिन लड़की का मन मानो की कही और ही हो। बाज़ार आई तो सब्जी लेने थी लेकिन 15 किलो आलू के सिवाय कुछ नही लिया। वैसे घर से उसे 2 किलो आलू लाने के लिए कहा गया था। प्रेम का मायाजाल था जिसमे वो पुरी तरह से उलझ गयी थी। परंतु प्रेम भी साधारण नही, बिल्कुल किसी कहानी की तरह उल्टे सीधे रास्तो पर ले जा रहा था इस जोड़े को। जोड़े का दूसरा भाग को शब्दों मैं बया कर पाना मुश्किल है लेकिन मैं तो कहानीकार हु मुझ तो शब्दों की नगरी मैं चोरी करके कुछ हिसाब तो बताना पड़ेगा- कहानीकार ने सभा मैं कहा और सब हस पड़े मानो कोई बहुत बढ़िया चुटकुला सुना दिया हो। लेकिन ये कौन जानता था की वो श्याम तो माया रचा रहा था। सबको मंत्रमुग्ध करने की माया। सब कहानी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे, आसपास के नौकर चाकर कब अपना काम बंद करके सभा मैं शामिल हो गए ये किसी को पता न चला। आखिर इस माया को फैलाने मैं एक पूरे गिरोह का हाथ था। श्याम तो मुहरा बस था ।

श्याम ने कहानी आगे बढ़ाई -" । ( अगला अध्याय जल्द आपके सामने होगा। )

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