सुनो! अब खुश रहना

                                 
रोज की तरह देर से उठकर जल्दबाजी में तैयार होकर राहुल अपना सोता हुआ चेहरा लेकर कॉलेज के लिए निकला। वर्तमान युग की बहुत शानदार खोज मोबाइल साथ में होने के कारण कॉलेज बहुत दूर होने के बावजूद भी ऐसा लगता था जैसे बस दो कदम का रास्ता ही तय किया हो।
                       कॉलेज पहुंचकर दोस्तों से मिलना और कैंटीन में नास्ता करना उसे इतना अच्छा लगता था कि वो निःशंकोच पहली क्लास छोड़ देता था, और फिर आदतानुसार वो लाइब्रेरी में गया और अखवार पढ़ने लगा , जैसे ही राहुल ने अखवार में पहली खबर देखि उसके चेहरे की सारी ख़ुशी जैसे धूल बन किसी आंधी में उड़ गई, एक पल में हँसी का नामोनिशान ख़त्म हो गया।
                      राहुल अखवार छोड़ कर अपने ही मन के ख्यालों में खो गया और सोचने लगा- आखिर लोग ऐसा क्यों करते है, जो दुनिया से लड़ने की सोच रखते है वो अपने ही आप से हार कर खुदखुशी कैसे कर सकते है।
                        हमारी जिंदगी का मुख्य उद्देश्य है खुश रहना और हम जो भी करते केवल खुद को खुश रखने लिए ही तो करते है ' हमें अच्छे दोस्त चाहिए ताकि हम खुश रहें,  हमें अच्छा परिवार चाहिए ताकि हम खुश रहें, यहाँ तक की  हमें परीक्षा में ज्यादा अंक भी इसीलिए चाहिए ताकि हम खुश रहें ' मगर लोग क्यों किसी एक दुःख के कारण पूरी जिंदगी की खुशियों को भूल जाते है, क्या हुआ अगर किसी परीक्षा में मेरे कम अंक आये तो, क्या हुआ अगर हमारा कोई दोस्त हमें धोखा दे गया तो। हमें तो ये सब इसीलिए चाहिए था न ताकि हम खुश रह सकें तो इनके न मिलने पर भी हम क्यों अपने मुख्य उद्देश्य को भूल जाते है।
                   और इन्ही ख्यालों में खोया हुआ राहुल अपने आप से वादा करता है कि वो अपने जीवन में सभी दुखों के कारणों को नकारते हुए हमेशा खुश रहेगा, और सामने रखी बैंच पर गुस्से में हाथ पटककर चिल्लाता है- " मैं खुश रहूँ या ना रहूँ पर हमेशा रहूँगा जरूर" और तभी पीछे लाइब्रेरी काउंटर पर बैठे टीचर राहुल पर चिल्लाते है "अगर पढ़ना नहीं है तो दूसरों को परेशान मत करो, बाहर जाकर बैठो" और उनको सुनकर राहुल की हसीं छूट पड़ती है और वो हँसता हुआ लाइब्रेरी से बहार आ गया।

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