कविता
जब मै चलता हूँ ।
पत्तियों की रेखायों से मिलकर, उनसे बातें करते हुए,
में चलता हूँ ।
बैलगाड़ी से खिंची, सड़कों की रेखायों से मिलकर, उनसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ
हवा में लैह रहा रही पत्तियों से छंटती हुई धूप से मिलकर, उनसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ ।
आस पड़ौस में बैठे जीवित विचारों से मिलकर, उनसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ ।
गुलज़ार साहब के लेखन से सीखते हुए , उनसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ ।
राह के हर मोड़ को, जीवन के मोड़ से जोड़कर , उनसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ ।
भरी भीड़ में भी , खुद को ढूंढने के लिए , खुदसे बातें करते हुए,
मैं चलता हूँ ।
जब मैं चलता हूँ ।
-मधुकर चतुर्वेदी
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