कुछ वक्त के बाद
कुछ वक्त के बाद आज फिर ये ख्याल आया है,
पथरीली राहों के इस सफर में क्या मैंने पाया है;
आज ख्वाहिश हो गई एक तस्वीर बनाने की,
चाहत हो गई उसे अपने रंगो में डुबाने की ।
पथरीली राहों के इस सफर में क्या मैंने पाया है;
आज ख्वाहिश हो गई एक तस्वीर बनाने की,
चाहत हो गई उसे अपने रंगो में डुबाने की ।
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सफर की राहों में जिदंगी को देखा है मैंने,
ठोकर खाकर यहाँ संभलना सीखा है मैंने;
एक अजनबी मुस्कान को अधरों पर रखता हूँ,
क्या रह गया है बाकि यही बात सोचता हूँ;
उन बिखरे ख्वाबों से पुराने मंजर याद आते है,
जाने क्यूँ वो बीते लम्हों को साथ ले आते है;
कुछ वक्त के बाद फिर हौसला आया है,
इस अँधेरी कोठरी में वापस उजाला आया है;
हसरत हो गई नये ख्वाबों को सजाने की,
चाहत हो गई उन्हें अपने रंगो में डुबाने की।
ठोकर खाकर यहाँ संभलना सीखा है मैंने;
एक अजनबी मुस्कान को अधरों पर रखता हूँ,
क्या रह गया है बाकि यही बात सोचता हूँ;
उन बिखरे ख्वाबों से पुराने मंजर याद आते है,
जाने क्यूँ वो बीते लम्हों को साथ ले आते है;
कुछ वक्त के बाद फिर हौसला आया है,
इस अँधेरी कोठरी में वापस उजाला आया है;
हसरत हो गई नये ख्वाबों को सजाने की,
चाहत हो गई उन्हें अपने रंगो में डुबाने की।
बातों का वो बवंडर डरता रहा मैं जिस से,
उसे आज खुलकर कहने की ख्वाहिश हुई है;
दम घोटती इस छोटी सी दुनिया से,
आज दुर चले जाने की चाहत हुई है;
दामन में खुशियाँ सजाने का हौसला आया है,
बाँहें फैलाकर हँसने का हमें सपना आया है;
कुछ वक्त बाद बेड़ियाँ तोड़ने की हिम्मत आई है,
जैसे इस बेजान जिस्म में जान लौट कर आई है;
ख्वाहिश हो गई नई राहों पर चलने की,
चाहत हो गई उन्हें अपने रंगो में डुबाने की।
दम घोटती इस छोटी सी दुनिया से,
आज दुर चले जाने की चाहत हुई है;
दामन में खुशियाँ सजाने का हौसला आया है,
बाँहें फैलाकर हँसने का हमें सपना आया है;
कुछ वक्त बाद बेड़ियाँ तोड़ने की हिम्मत आई है,
जैसे इस बेजान जिस्म में जान लौट कर आई है;
ख्वाहिश हो गई नई राहों पर चलने की,
चाहत हो गई उन्हें अपने रंगो में डुबाने की।
..... कमलेश .....
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