पंक्ति
" मजारों में चढ़ती हैं चादरें,
ठंड में ठिठुरते लोग है,
मंदिरों में लगते छप्पन भोग,
एक निवाले को तरसते लोग हैं।
ऐं खुदा! क्या दुनिया बनाई तूने,
धर्म का दिखावा तो करते,पर पत्थर दिल लोग है।। "
ठंड में ठिठुरते लोग है,
मंदिरों में लगते छप्पन भोग,
एक निवाले को तरसते लोग हैं।
ऐं खुदा! क्या दुनिया बनाई तूने,
धर्म का दिखावा तो करते,पर पत्थर दिल लोग है।। "
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