"क्यों खुदसे है अनजान तू।"


"क्यों खुदसे है अनजान तू।"
क्यूँ जीना चाहे औरों सा, जरा खुदको अब पहचान तू क्यूँ सबके जैसा दिखना चाहे क्यूँ खुदसे है अनजान तू।
हैं भले बने इक मिटटी के तुम अलग, मैं अलग, है राम अलग, श्याम अलग, न कोई है सामान यूँ, जरा खुदको ले पहचान तू।
तू झाँक अपने अंदर, जरा खुद के तू अब देख भीतर तुझमें बसता है खुदा, क्यूँ इससे है अनजान तू। अंदर तेरे शेर है बैठा, बहार सारे गीदड़, बेटा, क्यूँ खुदसे है अनजान तू जरा खुदको अब पहचान तू,
क्यूँ राहें भीड़ की पकडे तू, 'एकल चलो रे' बोले टैगोर, जरा उनको अब है मान तू, कर उनका अब सम्मान तू
है ग़ुलाम औरों के उसूलों का, रखवाला दूजों के विचारों का, कर खुदका अब सम्मान तू, जरा खुदको अब पहचान तू,
जो जान लिया खुदको तूने, भर जाएगा बुलंद उड़ान तू, छू जाएगा फिर आसमान तू, रख खुदको अब ध्यान तू।
क्यूँ सबके जैसा दिखना चाहे क्यूँ खुदसे है अनजान तू, क्यूँ जीना चाहे औरों सा, जरा खुदको अब पहचान तू।
क्यूँ खुदसे है अनजान तू, जरा खुदको अब पहचान तू।

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