आरक्षण
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लेकिन यह न बताया की हमपर ही चढ़ के जाना था।
मंज़िल धुंधली होती गयी लेकिन हम चलते गए
इस आसा मैं की शायद कभी एक किरण तो मिटाएगी इस सफेद अंधेरे को
इस आसा मै की कीमत होगी क़ाबिलियत की जज्बे की,
लेकिंन कीमत थी नाम की, सत्ता की
था ये पिछड़ो के लिए, लेकिन हम ही पिछड़ गए
होना था विकास लेकिन क़ई विकार हो गए
सीढ़िया तो न बनी लेकिन हम सीढी बन गए
सत्ता की लालसा मैं वो हमपर चढ़ गए
धुंधली मंजिल और रुकावट भी हमे न रोक सके
कलाकर है हम , कला को खुद कला भी न रोक सके
किरण है हम , कोई अंधेरा भी सवेरा न रोक सके
कुदरत के गुल है हम खिलने से आसमा भी न रोक
काबिलियत कहा है नामो मैं, काबिल को बंदिशे भी न रोक सके
जिद्दी हो इरादे तो समाज की लकीरे भी मिट जायेगी
ये आरक्षण क्या है जज्बे के सामने तो पहाड़ भी बिखर जाता है
पिछड़ा तो एक शब्द है, बस इस एहसास को भुलाकर तो देखो
मंजिले निखर और हिम्मत भी बढ़ जायेगी।
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